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जैसे कुमार ने कनकपुर की ओर प्रस्थान किया । दलबल के साथ नवलक्ष देश की सीमा पर उनने पड़ाव डाल दिया ।
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इस के बाद कुछ गुप्त चरों के साथ राजा पद्मनाभ को, मंत्रिराज गुणचन्द्र को और प्रधान लक्ष्मणदेव को अपने आगमन की सूचना भेज दी। सूचना पाते ही वे लोग बड़ी तेजी से वहां आ पहुँचे । राजकीय ढंग से राजा श्रीचन्द्र ने सबकी सलामी ली । युद्ध के समाचार पूछे कि क्या हाल चाल है ? । प्रधान मंत्री गुणचन्द्र ने हाथ जोड़ कर कहा- राजाधिराज ! गुणविश्रम अत्यन्त पराक्रमी और दुर्जेय शत्रु है । वह घेरा डाले पड़ा है टस से मस नहीं हो रहा । वह कहता है दश गुणा दण्ड लेकर ही हटू गा । राजेन्द्र ! आज तक तो इसका पलड़ा भारी ही रहा है । सारा कनकपुर एक प्रकार से इसकी कैद में दुःख पा रहा है । उसे छह राजाओं की सहायता प्राप्त है । वह हमारे देश को जबरन छीनना चाहता है ।
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महाराज ! हम बड़े भारी पशो-पेच में थे कि क्या करना ? इतने में आपका शुभागमन हो गया। आपके शुभागमन से आज हमारी सेना का रंग और हो हो गया है । हमारे सेनापति सेना के साथ भारी प्रसन्नता से
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