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जीवन एक संग्राम है। इसमें कई दांव पेच खेलने होते हैं ! धीर और वीर पुरुष ही इसमें फतेह पा जाते हैं। संसार में हार और जीत दोनों साथ २ चलती हैं। चूके को चौरासी के गोते खाने पड़ते हैं। इसमें अनुकूल
और प्रतिकूल ऐसे दो प्रकार के संघर्ष चलते हैं। विवेकी विजयी होता है, और अविवेकी का कचूमर निकल जाता है। - राजा श्रीचन्द्र भी अपने जीवन संग्राम का ठीक ढंग से संचालन कर रहे थे। रुद्रपल्ली में राजा बज्रसिंह के यहां-सुसराल के स्वर्ग-सुखों को भोगते हुए उनने एक रोज कनकपुर का ख्याल किया। राजा बज्रसिंह से बड़े
आग्रह से आज्ञा लेकर रति और प्रीति के समान परम सौंदर्य शालिनी दोनों स्त्रियों को साथ लेकर कामदेव के