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इसी वैतादव नामक पहाड़ पर मणिभूषवा नामका नगर है । वहाँ पर पहले रत्नचूड़ नामके राजा राज्य करते थे। उनके छोटे भाई मणिचूड़ वहाँ के युवराज पद को सुशोभित करते थे । रत्नवेगा और महावेगा हम दोनों उनकी स्त्रियां हैं । ये रत्नचूला, मणिचूला श्रादि उनकी पुत्रिय हैं। रत्नकांता आदि ये चार उनकी भानजिये हैं, रत्नचूड़ और मणिचूड़ इन दोनों को "अपने गोत्री विद्याधरों के साथ आकाश में घूमते हुए उत्तर-श्रेणी के स्वामी सुग्रीव विद्याधर ने जीत लिया। वे दोनों अपने समस्त धनमाल व परिवार समेत उस नगर को छोड़कर यहां चले आयें, और यहां पाताल नगर "बसा कर रहने लगे।
एक समय पुनः राज्य प्राप्ति के लिये मेरे पति रत्नचूड़, विद्यार चन्द्रहास तलवार को पाकर उसकी प्रयोगसिद्धि के लिये वन में गये बहाँ पर विधि के अनुसार नीचा मह किये उस विद्या को ज्योंही साधने लगे त्योंही किसी ने उन्हें मार दिया।
जब प्रातःकाल हम पूजा की सामग्री लेकर वहाँ पहुँची तो वे मरे पाये। उसी जगह उनकी प्रेत-क्रिया करके हम अपने स्थान पर लौट आई।
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