________________
( ३६१ ) एक समय रत्नचूड़ का पुत्र और रत्नचूड़ा का भाई रत्नज पिता की मृत्यु से दुःखी हो कर इधर उधर भटकता हुआ एक बड़ी भारी अटवी को प्राप्त हुआ वन में किसी स्थान में प्रकाश का भ्रम पैदा कर, इस मदनसुन्दरी को अपने पति से पृथक करके यहाँ ले आया। इस के शील के प्रभाव से एवं. हमारी धाक से वह इस के साथ कोई अत्याचार नहीं कर सका । उस दिन से मैंने इस सदाचारणी सुशीला मदना को अपनी धर्म-पुत्री बनाकर रक्खा है। यह इन सभी कात्याओं को अपने पति के गुणों और चरित्र का ज्ञान कराती है। मदना द्वारा कहे हुए आपके गुणों को व परोपकार युक्त कार्यों को सुन कर ये आप की हो चुकी हैं, और साथ में मदना को भी ये कह चुकी हैं, कि जो आपके पति हैं वे हमारे भी पति होंगे। .. एक समय मणिचूड़ ने किसी नैमित्तिक से पूछा कि भाई ! कृपा कर यह तो बताओ कि हमारा खोया हुआ राज्य कब मिलेगा ? उसने उत्तर देते हुए कहा, "महाभाग ! तुम्हारी आठों कन्याओं द्वारा वरण किया हुावर ही तुम्हारे खोये हुए राज्य को जीत कर लौटा लावेगा। ऐसे महापुरुष का संयोग अप्रतिचक्रा विद्या की साधना से ही हो सकेगा। उसके कथनानुसार मणिचूड और रत्नध्वज दोनों छः महिने में सिद्ध होने वाली उस