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(३८८ ) करने के लिये तैयार नहीं हुई तब वह विद्याधरी उसे अपनी छाती से लगा कर उसके दुःख से दुःखी हो फूट फूट कर रोने लगी।
कुमार अदृश्य रूप से वहां खड़ा ये सारी घटनाएँ देख रहा था । विद्याधरी की बातें सुनकर उसको ध्यान हो पाया कि बन में मुझ से जो विद्याधर मारा गया था यह उसी की पत्नी है । मुझ में अत्यन्त स्नेहवती है। इसके दिल में मेरे लिए लेशमात्र भी वैर प्रतीत नहीं होता है। ऐसा विचार कर कुमार उस नगर द्वार पर प्रकट होकर बैठ गये। उन ने द्वारपाल से कहा कि तुम अन्दर जाकर सूचित करो कि कोई व्यक्ति आप लोगों से मिलना चाहता है। द्वारपाल ने भीतर जाकर सूचना दी, और सूचना पाकर मणिवेगा वहां पर आ उपस्थित हुई । उसने रूप रंग और आकार से सुन्दर उस पुरुष से पूछा, "आप कौन हैं और आप कहां से
आये हैं ?" ... श्रीचन्द्र जबान देने ही वाला था कि इतने में मदन सुन्दरी भी सखियां समेत वहाँ पा पहुँची। वहाँ अपने पति को देखकर वह बड़ी प्रसन्न हुई। मारे प्रसन्नता के उसके रोमांच हो आये और कंठ गदगद होगया । आँखों में हर्ष के आँसू छल छला आये । रुंधे हुए स्वर से