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पुण्यवान जहँ पद धरे-प्रकटे नवे निधान ।
सुख दुख इस संसार में-पुण्य पाप फल जान। वीर पुरुष जब तक अपने आश्रित को सुखी नहीं बना लेते, वहां तक वे खुद सुख से नहीं बैठते हैं। यही हालत चरितनायक कुमार श्रीचन्द्रराज की थी । मदनमंजरी कहां गई ? वह सुखी है या दुःखी ? इन प्रश्नों का सही उत्तर नहीं मिल जाता, तब तक उनके लिये कहीं शांति से बैठ जाना असंभव था । राजा अरिमर्दन को छोडकर वे मदनमंजरी की खोज में पहाडों में, बीहडवनों में नगरों में घूमते ही जाते थे। .. शुभ-शुकनों द्वारा प्रोरित हुए के एक रोज एक बगीचे में रात्री विताने के ख्याल से टिके हुए थे। इसी बीच