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गुणचन्द्र के साथ सलाह मश्विरा कर के राज्य का भार लक्ष्मण मंत्री को सौंप कर दो बढिया घोडों पर दोनों मित्र मदनमञ्जरी की खोज में एक रोज रातको चुप चाप निकल गये । घोड़े बड़ी तेजी के साथ बढे जा रहे थे। बीहड़ जंगल पार हुश्रा जाता था। वहां एक वृक्ष के नीचे एक अवधूत को प्रातिसार की बीमारी से पीड़ित देखा । दोनों मित्र वहीं रुक गये । परोपकार का स्थान जान कर पडोस के गाँव सें. औषधि लाकर श्रीचन्द्र ने उसका इलाज किया । स्नान मालिश आदि से उस अवधूत को कुमार ने सन्तुष्ट किया।
अवधूत ने प्रसन्न होकर कुमार की प्रशंसा करते हुए अपने पास से-लोहे का सोना बनाने वाला पारसमणि उन्हें प्रदान किया। अवधूत का आयुष्य भी पूर्ण होने ही वाला था। उसकी मृत्यु हो जाने से कुमार ने गांव वालों को उस स्थान पर एक भारी अवधूत-मन्दिर बनाने का आदेश दिया और उसके योग्य धन भी दे दिया।
इस प्रकार परोपकार से. पुण्य उपार्जन करते हुए दोनों मित्र जंगल में आगे बढ़ रहे थे। मार्ग में बांसों की माड़ी में एक सौ आठ गांठोंवाला बांस उन्हें दिखाई