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र मेरा सारा दुख सुख रूप में परिणत मे गया है। मेरे लाल माज मेरी तपस्यायें, कठोर अमिनाहा सगवान का ध्यान,-गुरुदेवों की,कपा सन फलीभूत हुए हैं। गंगे के गुड की तरह मैं आज के अपने इस भानन्द का वर्णन नहीं कर सकती। पुत्र ! तुझे पाकर आज मैं पक्षी-प्रदत्त कष्ट को भी भूल चुकी हूँ। पर बेटा ! एक नयी चिंता मुझे आतंकित कर रही है, वह यह कि मेरे अचानक इस प्रकार गायब हो जाने से तेरे पिता को कितना असह्य-दुःख होता होगा ?
इस प्रकार मां के स्नेहं भरे बचनों को सुन कर कुमार कहने लगा-मां ! आज आप के दर्शनों से मैं धन्य
और कृतपुण्य हूँ। अाज बिना बादलों की वृष्टि हुई है, जो मैंने आज अपनी माता को पाया है । जननि ! संसार में आपसे बढ़ कर कोई वस्तु मुझे नजर नहीं आती। बड़े राज्य, सुन्दर पत्नियाँ, गुणवान्-मित्र, सर्वत्र विजय, अखूट वैभव, और भोग विलास की अपूर्व सामग्रियाँ ये सब आप की ही कृपा का फल मानता हूं। माँ ! पिता से आपको दशगुणा गौरव प्राप्त है। हजार शिक्षक पालक जो शिक्षा नहीं दे सकते उसको गुणवती माता एक इशारे में दे सकती हैं। मैं कहां तक वर्णन करू आपकी महिमा