________________
( ३६० ) के साथ ही वीणापुर नरेश के सिपाही कुमार के पद चिह्नों को खोज करते हुए वहां आ पहुंचे।
सिपाहियों के साथ मंत्री बुद्धिसागर ने कुमार से प्रार्थना की-राजन् ! वीणापुर को राजकुमारी पद्मश्री आप में और मेरी पुत्री आप के इन प्रधानजी में अनुराग रखने चाली हो गई हैं। हमारे राजा ने आप की खोज में मुझे भेजा है । सुनियें ! नंदीपुर के स्वामी हरिषेण की पुत्री तारलोचना के भेजे हुए शुक युगल को देख कर पिता की गोद में बैठी पद्मश्री मूर्छित हो गई । सावधान होने पर उसने कहा पिताजी ! मैं पूर्व जन्म में कुशस्थल की महारानी सूर्यवती के पास कर्कोटजा सारिका थी। भगवान् श्री आदिनाथ के मन्दिर में श्री चन्द्रकुमार को पति रुप में पाने की इच्छा से अनशन कर यहां पैदा हुई हूँ। यहां मैंने उन्हीं कुमार को देखकर निश्चय किया है, कि अब इस भव में मैं उन्हीं को पति बनाउंगी।
इसी लिये राजाजी ने आपको खोजने के लिये हमें मेजा है। सौभग्य से आप यहां मिल गये हैं। राजन् ! कृपा करके निज-चरण धूली से हमारे नगर को पवित्र कीजिये इतनमें वीणापुर नरेश अपनी पुत्री के साथ वहीं आ पहुँचे। बड़े, अग्रह समारोह के साथ कुमार को वीणापुर में प्रवेश कराया।