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भीलराज ने कहा कुमार ! परिस्थितियां ही मनुष्य को डाकू बना देती हैं। डाकू बन जाने पर भी क्या हमारे पास दिल नहीं होता ? मैं खुद इस धंधे से नफरत करता हूँ, पर क्या करू लाचार हूँ। पारस को छू कर लोहा जैसे सोना बन जाता है वैसे श्राप के प्रसंग से मेरा यह पाप भी छुट जायगा ऐसी मेरी दृढ धारणा है । आप मेरी प्रार्थना को न ठुकरायें ।
भावी लाभ को जानकर कुमार ने कहा कि यदि आज से आप दस्यु वृत्ति का त्याग करते हैं, तो आपकी कन्यासे विवाह करने में मुझे भी एतराज नहीं है । पल्लीपति बड़ा प्रसन्न हुआ, उसने भीलों के साथ डकेती, चोरी, आदि के धंधे का सर्वथा त्याग कर दिया। बड़ी धूमधाम से कुमार के साथ मोहिनी का विवाह हो गया । दहेज में हाथी, घोड़े, रथ दास दासी मणि-रत्न आदि अपूर्व वस्तुए भीलराजा ने कुमार श्रीचंद्र को दीं। उसमें अपना सुवेग रथ और उन दिव्य घोड़ों को देख कर कुमारने पूछा ये आपके हाथ कैसे लगे ? भीलराज ने कहा गायक वीणारa हमारे धांवे में इन घोड़ों समेत इस रथ को छोड़ भागा था। तभी से यह हमारे कब्जे में हैं. जब से ये घोड़े आये हैं तब से बहुत दुखी हैं । रातदिन इन की आँखों से आंसू बहते हैं। देखो न १