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इन की आँखें कैसी हो रही हैं। कुमार ! बेटी मोहिनी को दहेज में देने के लिये ही यह मेरा संग्रह है ।
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भील्लराज के साथ कुमार घोडों के पास गया । घोड़े मारे हर्ष के हिनहिना ने लगे अपने सच्चे स्वामी को पहचान कर उनकी कली २ खिल उठी पल्लीपति ने कुमार से पूछा कुमार ! इनकी इतनी प्रसन्नता का क्या कारण है ? कुमार ने कहा१ कुमार ने कहा- भीलराज ! यह सुवेग रथ और ये वायुवेग और महावेग नाम के घोड़े मेरे ही हैं, मैंने ही जयकुमार के षड्यन्त्र से अनजान वीणारव की याचना पर इन्हें दे दिया था । आज ये मुझे पहचान कर खुशी जाहिर कर रहे हैं । ऐसा कह कर कुमार श्री चन्द्र ने प्यार से पुचकारते हुए घोड़ों की पीठ पर हाथ फेरा और उन्हें थपथपाया घोड़ों ने नया जीवन पाया । भील्लराज भी खुश हो गया ।
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कुमार ने कहा पल्लिपति ! आपका यह सारा दहेज और मेरा यह हाथी अब आप ही संभालें । अभी तो मैं सीर्फ इस रथ को ही लेता हूं। उनने भीलराज के सिपाहियों में से कु जर नाम के एक क्षत्रिय कुमार को अपना सारथी चुना । अपनी नाम मुद्रिका दिखाते हुए अपना संक्षिप्त परिचय भी दे दिया । यह श्रीचन्द्र कुमार हैं ऐसा जानकर भीलराज बडा ही खुश हो गया ।