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सूचित कर दिया । पर न जाने वह क्यों नहीं आया । देवताओं के वचन भी तो महिमावाले होते हैं न ?
अब राजकुमारी कहने लगी देव ! मैं भी तो देव द्वारा ठगी गई हूँ । मेरे भाग्य से ही यक्ष- द्वारा आप मुझे मिले हैं। मेरी आपसे प्रार्थना है कि हम दोनों का यहां अधिक ठहरना खतरनाक होगा । न जाने पिताजी क्या कर बैठें ?
श्रीचन्द्र ने कहा प्रिये घबडाओ नहीं । वे भी मनुष्य हैं और मैं भी मनुष्य ही हूँ । देखलुगा वे कितने पानीमें हैं। रात तो राजकुमारी की दुविधा में ही बीती । प्रातः काल में जब स्पष्ट रूप से कुमार के दर्शन हुए तब वह बडी ही प्रसन्न हुई ।
यक्ष - मंदिर के पुजारी ने राजा से सारी घटना कह सुनाई। उसने क्रोधावेश में अपने सेनापति और सिपाहियोंको भेज दिये । कुमारी थर थर कांपने लगी । कुमार ने कहा- प्रिये ! डरो मत । ये बेचारे अभी भागते हैं। कुमार ने एक सिंह गर्जना की, मीदड़ के समान सारे सिपाही भाग खड़े हुए। राजा को पता चला, तब वह अधिक क्रोध में आकर पूरी ताकत के साथ आया । कुमार ने सखियों सहित पत्नी को गुठी की नाम मुद्रा दिखा