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( ३८० ) राजकुमारी ! आज से पांचवें दिन मैं अपने मन्दिर में रात्री के समय लम बेलामें तुम्हारे पति को ले भाउमा।
सुबह होने पर अपने स्वप्न को राजकुमारी ने बडी प्रसन्नता से हमें कह सुनाया। स्वप्न की बात जान कर हमने जो कुछ किया इसको भी आप सुनियें
इसी नगरी में श्रीदत्त नाम का एक मंत्री पुत्र रहता है। उसने राजकुमारी के रूप-गुणों से अकृष्ट होकर इनकी प्राप्ति के लिये कई उपाय किये । किन्तु राजकुमारी तनिक भी उसे नहीं चाहती थी । उसने मुझे लोभ दे दिया, मैं उसके फंदे में फंस गई। मैंने राजकुमारी का स्वप्न उससे कह दिया। उसने मुझे बताया कि तुम जाकर राजकुमारी को यह कह दो कि मंत्री कुमार श्रीदत्त को भी ऐसा ही स्वप्न आया है। मैंने वैसा ही किया और राजकुमारी को जाकर झूठमूठ ही निवेदन किया कि आज रात्रि में श्रीदन ने भी ऐसा ही स्वप्न देखा है ।
राजकुमारी ने कहा, यदि ऐसा है तो यक्ष के बचन मुझे मान्य हैं। यह कह कर राजकुमारी चुप हो गई
और उसने सखियों को सारी विवाह-सामग्री तैयार करने की आज्ञा दे दी। मैने मंत्री-पुत्र से भी सारा कार्यक्रम