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(३७८ ) गोदावरी नर्मदा आदि का नाम लेकर अपनी ठंडी भगा रहे थे । हमारा चरित नायक कुमार श्रीचन्द्र उस भीलपल्ली से पार होता हुआ नदी के कीनारे हवा के साथ बातें करता हुआ शाम होते २ कुण्डिन पुर जा पहुंचा। ... नगर के बाहरी उपवन में विश्राम के लिये डेरा डाल दिया। पडोस में ही एक यक्ष का मंदिर था । उस में सोने की व्यवस्था की गई। कुमार प्रसन्नता से सो रहा था। कुछ समय के बाद कोई राजकुमारी सरस्वती अपनी सहेलो सुनामिका और सुरुपिणी को साथ लिये विवाह की सामग्री लेकर वहां आ पहुंची। उन्होंने अवाज लगा कर कहा कि-मंत्रीपुत्र श्रीदत्त ! उठो ब्याह के लिये तैयार हो जाओ। वहां मंत्रीपुत्र तो कोई था नहीं । श्रीचन्द्र ही था वह उठ बैठा और बिना चपट किये चुपचाप ब्याह कर लिया। विवाह करके कुमार जब सोने लगा तो उन कन्याओं ने कहा स्वामिन् ! बाहर सांढनी खड़ी है, चलिये यहां से कहीं अन्यत्र चलें । इस पर कुमार ने कहा अभी रात्री है। मैं चल नहीं सकता, न मुझे सांढनी पर बैठने का ही अभ्यास है। चुपचाप सो जाओ गड़बड़ मत करो।