________________
( ३७५ ) कुमार ने पल्लिपति और भीलों को लक्ष्य करके कहना शुरू किया-आप लोग ? कमसे कम आठम चौदश अमावस्या और पूर्णिमा इन चारों पर्यों में हिंसा आदि कतई न करें। पर्व तिथि में आनेवाले भव का आयुष्य पडता है। शास्त्रों में कहा भी है
अट्ठमी चज्दसी पुषिणमाय, तह मावासा हवह पव्वं । । मासम्मि पव्व-छक्कं, तिन्निय पव्वाई पक्खम्मि ।।
चतुर्दश्यष्टमी चैवा-मावास्या चैव पूर्णिमा। पर्वाण्येतानि राजेन्द्र ! रवि संक्रान्ति रेवच ।।
तैल-स्त्री-मांस भोगी स्यात् पर्वस्वेतेषु यः पुमान् । 'विरमुत्र-भोजनं नाम-प्रयाति नरकं मृतः॥ अर्थात-आठम चौदस अमावास्या पूर्णिमा दूज पंचमी और एकादशी महीने में ये छह और पक्ष में तीन बड़े पर्व होते हैं। विष्णु पुराण में कहा है कि-उपर बताये दिन
और रवि संक्रान्ति का दिन ये पर माने जाते हैं। इन पर्यों में तैल स्त्री और मांस का भोग करने वाले टट्टोपिसाव का भोजन करते हुए मर कर के नरक में जाते हैं।
. जीव की रक्षा करने में ही हमारी रता है, हमारी भलाई है। सभी जीवित रहना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता। सभी शास्त्रों का एक ही उपदेश है