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कुमार अपने को बाहों से बचाता हुबा, हाथी द्वारा 'उखाड़ कर दी हुई व शाखाओं और पत्थरों से उन मीलों को मार भगाया । .
भीलों को भगा कर तेजस्वी कुमार श्रीचन्द्र एक सघन पेड की छाया में विश्राम करने लगा । वहां कहीं से वन विहार करती हुई भील कुमारीकाए आ पहुँची । भील राज की कन्या मोहिनी कुमार को देखते ही मोहित हो गई। उसने अपने बाप से जाकर कहा कि-पिताजी ! मैं तो उस हाथीवाले बहादुर पति को ही स्वीकार करती हूँ। किसी दूसरे को पाने की इच्छा अब है ही नहीं।
भिल्लराज अपनी इकलौती बेटी की इच्छा का ख्या. ल करके विनीत वेश में कुमार के पास पहूँचा । कहने लगा महापुरुष ! आप महान् हैं । हमारे अपराधों के लिये क्षमा करें। इस मेरी पुत्री को स्वीकार कर मुझे प्राभारी करें । कुमार ने कहा-जब तक आप का डाकुओं का व्यवहार बना रहेगा तब तक मैं आपसे अपना संबंध जोडना ठीक नहीं समझता । नीति दुप्कुल से भी स्त्री रत्न को स्वीकारने की प्रेरखा करती है पर मेरे सम्बन्धी हो कर
आप डाकू बने रहें यह मेरी शान के खिलाफ बात मानता हूँ। मतः मैं आपकी प्रार्थना मंजूर नहीं कर सकता ।