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प्यास बुझाकर उसने अपने असली वेशको सारण किया । अनन्तर प्यार से पुचकारते हुए, कुमार उसके पैरों के सहारे उसकी पीठ पर जा बैठा।. . '
महाराजा प्रतापसिंह अपनी सेनाको लेकर हाथी के पीछे गये सारी रात श्री चंद्रको सबभोर होढा पर वह उन्हें कहीं मिला ही नहीं। आगे पहाड़ी प्रदेश में उसके 'खोज भी न मिले । महाराज को अपने सर्वश्रेष्ठ हामी के चले जाने का उतना कष्ट नहीं हुश्रा, जितना वक्त वेशधारी कुमार के चले जाने का हुश्रा वे कहने लगेअरे ! मुझे प्राण दान देने वाला वह ज्ञानी कितना सच्चा
और उपकारी था। मैं तो उसका कोई बदला नहीं चुका सका ! । महाराज उसके गुण स्मरण करते हुए कुशस्थल में लौट आये। ... इधर उस गजराज की पीठ पर चढा हुआ । कुमार. श्रीचन्द्र श्रानन्द से वन-विहार कर रहा था । पास की पहाडी पराभीलों को एक पल्ली थी । पल्लीपति ने उसाको देखतेही पकडने की इच्छा से भील सेना के साथ श्राकर उसे घेर लिया। जोर से धमकाते हुए वह कहने लगा अरे तू कौन है ? कहां जायगा १-यहां क्यों आया है, . साथ ही भीलोंने बाण बरसाना शरु कर दिया।