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वसन्त का समय था । आमों पर मैंजरियाँ आ रही थीं। उनके रसास्वाद से उन्मत्त होकर कोकिलाएँ पंचम स्वर में आलाप कर रही थीं। पतझड़ की समाप्ति से पेड़ों की डालियां में नई नई कोंपलें अपने रंग बिरंगी गुच्छों के साथ वनश्री की शोमा को अनंत रूप से प्रदर्शित कर रही थी। प्राणी मात्र के जीवन में नई उमंगे, नई नई आशाओं के साथ तरंगित हो रही थी । ऐसे ही समय
में कुशस्थलपुर के राजा का जयकलश नाम का मुख्य - हाथी किसी कारण से मदोन्मत्त हो गया|वह अपने बंधनों
को तोड़कर और महावत को मारकर शहर में पील पड़ा। उसने नगर में छकड़ों और घोडा-गाड़ियों को उलट 'दिया। दुकानें उजाड़ दी। सामने आने वालों को कुचल