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पूरब पुण्य प्रभावतें जंगल मंगल होय ।
पुण्य करो संसार में पुण्य कियां सुख होय ॥ पुण्यवान् पुरुष जहां जाते हैं, वहीं उन के लिये आनन्द मंगल होने लगते हैं। समुद्र उनके लिये क्रीडा सरोवर, सिंह उनके लिये खचारी, सांप उन के लिये फूलों की माला और विपत्तियाँ उनके लिये संपत्तियाँ बन जाती हैं जिन ने जीवन में धर्म की आराधना से मुख्य संचय किया हुआ होता है।
चरितनायक श्रीचन्द्र उन्ही पुण्यकान् पुरुषों में एक अनुपम पुल्य-पुरुष हैं। संपत्तियां उन्हें खोजती 'फिरती थीं। जंगल में अचानके माता का मिलाप होने