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नहीं कहा जा सकता। इसीलिये कुछ ज्ञानी प्राचार्य उपरोक्त योग के लक्षण में-क्लिष्ट-पद को और जोड़ने की सिफारिश करते हैं। अर्थात्
योगः क्लिष्ट-चित्तवृत्ति-निरोधः खराब चिर वृत्रियों को रोकने का नाम योग है।
देखिये गुदा के मूल में चार पांखुड़ियों वाला एक आधार चक्र है। लिंग के मूल में षट्कोण आकार का स्वाधिष्ठान चक्र है। नाभि में दश पांखुड़ियों वाला मणि पूरक चक्र है । हृदय में बारह पांखुड़ियों का अनाहत चक्र हैं। कण्ठ और ग्रीव में-सोलह पांखुड़ियों का विशुद्ध चक्र है। ललाट में बारह अक्षरों का प्राशा चक्र है। ___महाराज के साथ राज-योग हठ-योग ध्यान धारणा समाधि आदि योगांगों पर चर्चा करते हुए अवधृत ने अपने ज्ञानी होने की छाप बड़े सुन्दर ढंग से जमा 'दी। इसीलिये कहा है-ज्ञानं सर्वत्रगं चचुः ।।
• एक रोज जयकुमार आदि राजकुमार आपस में एक पड्यंत्र कर रहे थे, हमार ने अदृश्य रूप से सुन लिया। वे कहते थे-विमाता सूर्यवती के मोह में महाराज मर जाते