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( ३६१ ) माता की आज्ञा से पन श्री और नंदीपुर की राजकुमारी तारलोचना के साथ कुमार श्रीचन्द्र ने न्याह कर लिया। गुणचन्द्र का विवाह कमल श्री के साथ होगया।
विवाह विधि सम्पन्न हो जाने पर कुमार ने उस बुद्धि सागर मन्त्री को अपने पिता महाराजा प्रतापसिंह के पास अपनी माता रानी सूर्यवती की कुशल-सुचना देनेके लिये सांढणी-सवारों के साथ भेजा, और कहा किकनकपुर में लक्ष्मण मंत्री को भी इस बात की सूचना दे देवें।
श्रीगिरि पहाड़ के उस भील ने राजा श्री चन्द्र को एक सोने की खान दिखलाई। प्रसन्नता से इसने वहां श्रीचन्द्र नगर वसाया। उस नगरके चारों ओर मजबूत किला बनवाया । बड़ी २ सड़कें, चौराहे, बाजार, मठ, मन्दिर, और हाट-हवेलियों से सम्पन्न उसे बनाया । बाग बगीचों कुओं और तालावों से उसे सुसजित किया। ... श्री गिरि के मध्य भाग में श्री चन्द्र ने चार दरवाजों बाला. विशाल उन्नत सुवर्ण शिखरों से विराजित एक श्री जिन मन्दिर बनवाया। उसमें श्री चन्द्रप्रभ स्वामी की प्रतिष्ठा करवाई। आस पास के भयंकर जङ्गल.को साफ
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