________________
(३५५)
श्रीचन्द्र कुमार ने भी, विस्मित और प्रसन्न होते हुए पूछा माताजी आप का अंगज पुत्र होते हुए भी मैं सेठ के घर कैसे गया ! और आप यहां कैसे पधारीं ? इन दो बातों का स्पष्टीकरण कीजियें । बेटा ! जब तू गर्भ में था, तब तेरे पिता कुशस्थलाधीश युद्ध में पधारे थे । तेरे सौतेले भाई जयकुमार आदि ने किसी निमित्त जानने वाले से जाना, कि राज्य का उत्तराधिकारी तू होगा, तो तुझे मारने के लिये उनने ठान ली। मुझे मेरी सखियों से पता लग गया । गुप्त रीति से तेरा जन्म होते ही फूलों की टोकरी में मालन के द्वारा तुझे मैने बगीचे में पहुंचा दिया | सेठ लक्ष्मीदत्त ने देवी के संकेत से फुलों के ढेर से तुझे अपने घर ले जाकर अपना पुत्र प्रसिद्ध किया । चन्द्र पान के दोहद से हमने तेरे लिये श्रीचन्द्र कुमार नाम तजवीज़ कर के यह गुठी बनवाई थी देख ! यह तेरी उंगली में लगी हुई है।
-
लक्ष्मीदत्त के लेजाने के बाद हमारी सखियों ने तुझे ढूंढा वहां तेरा पता ही न लगा । मेरे दुःखों का -पार नहीं था। उस दुःख में कुल देवी ने मुझे स्वप्न में कहा कि किसी धनवान के घर तुम्हारा लालन पालन हो रहा है। वहीं वह सुरक्षित रह सकेगा। तू चिंता मत कर । देवी के कथन से मुझे कुछ शांति हुई ।