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श्रीचन्द्र को दिखाई दी । वह हडबडा कर उठ खडा हुआ, उसके सामने गया, और मातृ भाव से उसके चरणों में कुक गया। कुमार ने कहा माँ ! आप इस प्रकार अकेली इस वन में कहां से आ रही हैं ? उस आगंतुक संभ्रान्त महिला की दृष्टि कुमार की अगुठी पर लिखे- 'श्री चन्द्र कुमार' - इस नाम की ओर गई तो उसने कुमार को पहचान लिया, उसके स्तनों से दूध की धारा छूट गई ।
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बड़ी प्रसन्नता से उस देवी ने पूछा बेटा ! सेटले दमों"दत्त के घर में प्रसिद्ध श्रीचन्द्र तुम्हीं तो हो न ? चकित होकर कुमार ने उत्तर दिया जी हां यह सुनते ही उसने श्रीचन्द्र को अपनी गोद में बिठा कर हर्ष के आंसुओं से नहलाती हुई कहने लगी ।
ए मेरे आंखों के तारे ! हिरदेके हार ! ए मेरे लाडले बेटे ! चन्द्रकुमार ! आज मेरा जन्म सफल हुआ । मैं रानी सूर्यवती तेरी मां हूँ | तू मेरा बेटा है। पूर्व कर्मों की महिमा से तेरा मेरा बारह वर्षों वियोग हो गया था | बेटा ! ज्ञानी गुरु के बचनो से आशा ही श्राशामें मैंने ये दुःख के वर्ष बीताये हैं। आज तेरा मिलना हुआ
। यों अपने बेटे का लाड प्यार करती हुई उसने पुत्रवती होने का सच्चा सुख उसी रोज अनुभव किया ।