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अद्भुत ढंग से यहां के राजा हुए हैं। मेरी प्रसनता का पार नहीं रहा। मैं सबसे आगे बढ़ गया। रास्ते में मेरा घोड़ा मर गया, उसकी परवाह न करते हुए मैं अकेला ही इस रूप में पा रहा हूँ। . . . आज आप के दर्शन पाकर कृतार्थ हो गया हूं।
आज मेरा सारा दुःख सुखं रूपमें परिणत हो गया है। कुशस्थलपुर में आप के आने की आशा से गिन गिन कर दिन बिताये जाते हैं। माताजी सूर्यवतीजी ने श्राप के आगमन तक लड्डु-घी आदि का त्याग कर रक्खा है। सभी लोग आप के आने की टोह लगाये हुए हैं।
आप के वियोग दुःख से ही वे दुखी हैं। अन्यथा सब कुशल मंगल है । - उपस्थित मंत्रियों ने, नागरिकों ने गुण चन्द्र के मुख से ये सारे हाल जान कर भारी खुशी का अनुभव किया। सब लोगों ने गगन भेदी आवाज से जयघोष किया। राजा श्रीचन्द्र सब के साथ वहां से चल कर नगर में
आये । गुणचन्द्र को प्रधान मन्त्री बनाया । पिछले सिपाही भी धीरे २ सब आ पहूंचे-सर्वत्र प्रसन्नता का वायु-मण्डल छा गया।
. इस प्रकार पूर्व जन्म में किये तप के प्रभाव से श्रीचन्द्र कुमार सुखभोग करने लगे । ठीक है, तप. ही इस लोक में और पर-लोक में सर्व-सिद्धि का प्रधान कारण होता है ।