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मानुसरण करते हुए नगर के चबूतरे तक जा पहुंचा! कुमार से बड़ी अनुनय विनय करके अपने घर ले गया और उन दोनों को पके हुए बड़े बड़े धामके फल अर्पण किये ।
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कुमार श्रीचन्द्र ने पूछा- इन दिनों में असमय में ऐसे श्राम कैसे और कहां से मिले ? भीलने कहा मेरे राजा ! इस पहाड़ के पांच शिखर हैं। उनमें ईशान शिखर सब से ऊंचा है। वहां विजयादेवी का मंदिर है । उसके बगीचे में देवी के प्रभाव से सदा फल देने वाला श्रम का पेड़ है। मैं वहीं से इन फलों को हमेशा लाता हूँ ।
मालिक ! पहाड़ में पहुँचने का केवल एक ही मार्ग है । सिवाय मेरे इस पहाड़ में जाने में कोई दूसरा समर्थ भी नहीं है । पुरखाओं से यही क्रम चला आया है। यह कितना कोश है ? इसका उतार चढाव कहां कितना है ? इसमें कहां २ गुफायें आदि देखने योग्य हैं ? मैं यह सब जनता हूँ | अगर आपकी इच्छा हो तो आइयें आपको भी इस पहाड़ पर घुमा लाऊ ।
मित्र के साथ कुमार श्रीचन्द्र भील के निवेदन करने पर उस पहाड़ पर गये। गुफायें, घाटियें, करणे, शिखर, प्रेड, लताएँ आदि अनेक दर्शनीय वस्तुओं को देखते
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