________________
(३४६)
पाठकों को याद होगा कुशस्थलपुर में पहिले
मंदिर में एक
:)
श्रीचन्द्र कुमार को देख कर भगवान के सारिको — मैना ने दूसरे जन्म में यह हो, कह कर अनशन कर लिया था। मर कर वीणापुर के राजा पद्मनाभ की कन्या पद्मश्री नाम से हुई थी — वह अपनी अभिन्न- हृदया सखी मंत्री -पुत्रो कमलश्री के साथ उद्यान - क्रीडा से निवृत्त होकर अपने महल की तरफ आ रही थी । उसने गुणचन्द्र के साथ कुमार श्रीचन्द्र को देखा ।
कुमार मेरा पति
1
उस मैना का जीव
विमलं कलुषीभवच्च चेतः, कथयति पुरुष हितैषिणं रिपुचा ।
हमारे सामने वाला आदमी हितैषी है, या दुश्मन इस का पता निर्मल और मलिन होता हुआ हमारा मन ही दे देता है ! श्रीचन्द्र के दर्शन मात्र से पद्मश्री का हृदय पद्म खिल उठा । उसने कुमार के पाण्डित्य को देखने के लिये अपने महल में पहुंच कर चन्दन से भर कर एक सुवर्ण का कटोरा अपनी दासी के साथ कुमार के पास भेजा । कुमार ने अपनी कनिष्ठिका उंगली की अगुठी उतार कर चंदन में डाल कर उसे वापस कर दिया। दूसरी चार कुमारी ने बिखरे हुए फूल एक रकेची में सजा कर