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अद्यापि नोज्झति हरः किल कालकूट
मम्भोनिधि वहति दुस्सहवाग्वाग्निम् । कूर्मो विभर्ति धरणी फिल पृष्ठभागे,
ह्यङ्गीकृतं सुकृतिनः परिपालयन्ति ॥ . . . अर्थात-कवि सम्प्रदाय में कहा जाता है कि पिये हुए कालकूट जहर को महादेवजी ने नहीं थूका । दुस्सह वडवाग्नि को समुद्र वहन करता ही है । पृथ्वी को अपनी पीठ पे कछुवेने धार. ही रक्खी है। बड़े आदमी जो बात अंगीकार कर लेते हैं उसका अन्त तक पालन भी करते हैं। .. राज्य सुख को भोगते हुए भी चरित्र नायक राजा श्रीचन्द्रकुमार मदन मंजरी को नहीं भूला था । अपने मित्र