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.-10-2013.hr
( ३१६ ) मुझे कोई ऐसा मनुष्य नहीं मिला, जो मेरे इस कार्यमें उत्तर साधक बने । यहाँ पर तुम्हें प्राकृति और शरीर की कान्ति से महापुरुष और परोपकारी समझ मैं तुम्हारे पास आया हूँ अतः तुम श्रीज 'रात्रि में मेरे उत्तर-साधक, बनो जिससे मेरे कार्य की सिद्धि शीघ्र हो जाय ।"
" परोपकारी कुमार उसकी प्रार्थना को ठुकरा न सका, और उसे उस कार्य की विधि पूछ बैठा। योगी ने 'उत्तर दिया, “महाशय ! स्वर्णपुरुष की सिद्धि रात्रि के समय शमशान में मनुष्य के मृत शरीर की साधना से होती है और सत्वशाली पुरुष की विधमानता में सारी सामग्री सुलभ हो जाती है।" .
... ... योगी के वचन सुनकर श्रीचन्द्र ने कहा, "अगर ऐसा है तो जाओ, वहाँ जाकर अपनी सामग्री जुटाओ। मैं वहाँ अवश्य ही आऊंगा ।" कुमार की प्रशंसा करता हुआ वह योगी वहाँ से चलकर शमशान में पहुँचा और वहाँ पर सारी सामग्री जुटाली । अग्नि कुण्ड
और शवस्थान आदि का निर्माण अभ्यस्त होने के कारण उसने बात की बात में कर लिया।
वर योगी के चले जाने के बाद कुमार ने अपनी पत्नी की योमी का सारा हाल बतला दिया। यह सुन
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