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( ३२८ ) पायजेब-झांझर निकाल कर चुप चाप अपने उतारे , पर लौट आया।
कुमार उस झांझर को अपने मित्र सुबुद्धि के हाथ दे दिया। बाद में दोनों ने योगी का रुप बना कर स्मशान में जाकर डेरा डाल दिया । सुबुद्धि गुरु बना और राजकुमार शिष्य हुा । गुरु की आज्ञा से शिष्य पाय मेव लेकर बाजार में बेचने को गया । एक सरौफ से कहा कि इस के बदले में मुझे धन दे दो। ___ इधर राजकुमारी के पायजेव चोरे जाने की चर्चा सारे शहर में बिजली के वेग से फैल चुकी थी। उस सर्राफ ने उस योगी-वेश-धारी कुमार को पायजेब समेत राजा के पास पकड पहू'चाया । राजा ने अपना नाम देख कर उसे पहचान लिया । राजा का क्रोध भड़क उठा। उसने योगी से पूछा, जल्दी बताओ यह नुपूर तुम्हारे हाथ कैसे लगा ? योगी ने कहा राजन् ! इस विषय में मैं कुछ नहीं जानता हू। इस बात का पता केवल मेरे गुरुजी को हो सकता है। ........ - योगी के ऐसा कहने पर राजा ने सिपाही भेज कर गुरु को भी सख्ती से बुला लिया ।.गुरु जी आकर उपस्थित हुए। उन्हों ने कहा " महाराज ! जब मैं आज़
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