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अर्थात्-देव-द्रव्य को खाने वाला जीव अनंत-संसार में भटकता है। देव-द्रव्य के खाने से, परस्त्री का गमन. करने से, हेगौतम ! सातवार सातवीं नारकी में जीव कों जाना पड़ता है। देव-द्रव्य से जो वृद्धि होती है, और उस द्रव्य से जो धन-संख्या होती है, वह धन कुल-नाश के लिये होता है। मर कर के भी देव-द्रव्य खाने वाला मनुष्य नरक में जाने वाला होता है।
इस शास्त्रीय-वचनों से कुमार ने सिद्धपुर-वासियों को देव-द्रव्य छोड़ने का उपदेश दिया। कई आदमियों ने देव-द्रव्य खाना छोड़ दिया। कईयों ने सोचेंगे कहकर कुमार को अपना अतिथि बनाना चाहा पर कुमार वहां न ठहर कर आगे के लिये प्रस्थान कर गया।
रास्ते के किसी पार्वतीय-गांव में उन दोनों ने शौचादि कार्यों से निवृत्त हो भोजन किया। दूसरे दिन वे वहां से चले । चलते चलते किसी बीहड़ जंगल में जा पहुँचे । शाम होने वाली थी। दिनभर चलते २ मदनसुन्दरी थक गई थी । कुमार ने कहा-इसी बड़ के नीचे रात बिता ली जाय तो ठीक रहेगा । बड़ के नीचे कुमार ने घासफूस का बिछौना बनाकर राव बिताने के उद्देश्य से वहीं सोना तय किया। पहले दो पहर तक मदना