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( ३३४. ) कुमार श्रीचन्द्र पहिले से ही तैयार था वह सिंह को तरह गरज कर उन पर टूट पड़ा। कई मारे गये। कई अधमरे हो गये । कइयों के अंग उपांग कट गये। बाकी के बचे हुए भाग खडे हुए । भागते हुए वे लोग कहते जाते थे वाप रे ! मार दिये । मरवा दिये, इस पापी ने । यह तो कोई विद्याधर है। नाहक इससे हमें भिड़ा दिया।
- राजकुमारी मदना अपने पति के सिंहनाद को, तलवार के हाथों को, और विरोधियों की तादाद को देख कर बहुत खुश हुई। उस में भी वीर-रस भर गया उसे वीरपत्नी होने का गौरव मालूम हुआ।
उस विरोधी टोले के भाग जाने पर अपनी प्रियतमा मदना से प्रसन्नता की बातें करता हुआ कुमार पहाड़ में ऊबड खानड और टेढे मेढे मार्गों से कभी धीरे और कभी तेजी से चलता हुआ सिद्धपुर नगर में जा पहुँचा। वहाँ तीर्थभूत एक विशाल श्री जिन मन्दिर के दर्शन किये । वहां के प्रभाव से प्रेरित हो दूर दूर से लोग भगवान् श्री
आदिदेव के दर्शन के लिए आते थे । वस्त्र अक्षत फलादिकों से अनेक प्रकार की पूजाएँ रचाई जाती थीं। वहां के निवासी बनिये लोग भगवान् की पूजा में चढाये हुए द्रव्य को आपस में बांट लेते थे। देव-द्रव्य का उपभोग