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(३३७ .) सोती रही, कुमार जागता रहा। तीसरे पहर में कुमार सो गया और वह जागती रही । चौथे पहर में वह फिर सो गई । उस समय कुमार जाग रहा था । उत्तर-दिशाकी ओर से कुछ तीव्र प्रकाश दिखाई दिया । क्या यह किसी रत्न का प्रकाश है ? यह क्या है ? चलकर देखना चाहिए कौतुक के मारे कुमार प्रकाश की तरफ तेजी से चला पर वह प्रकाश कभी दूर, कभी निकट होता हुआ कुछ आगे बढकर एकाएक गायब हो गया। कुमार को बड़ा आश्चर्य हुआ किन्तु उसे कोई इन्द्रजाल समझकर उन्हीं पैरों वापस लौट आया। सोयी हुई मदना से कुमार ने कहा-प्रियतमे ! उठो । गत बीत चली है। भगवान् भास्कर उदयाचल के ऊँचे शिखर का स्पर्श कर रहे हैं। एक बार, दो बार, तीन बार आवाज देने पर भी जब कोई उचर न मिला तो उसने विशेष प्रयत्न किया, और उसे मालूम हुआ कि वह तो वहां है ही नहीं।
.कुमार भौंचक्का सा रह गया फिर भी न घबड़ाते हुए, उसने बड़ी धीरज. से उसे ढूढना शुरु किया मगर मदना के पैरों के निशान तक उसे दिखाई न दिये। ..
वह उसके वियोग में दुखी होकर पागलों की तरह इधर उधर घूम रहा था। अचानक उसे विचार आया