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दिया ।
सुनाया। लोग सुनकर लोगों ने पूछा गायकजी ! क्या आपने श्रीलकुमारको देखा है ? उनने कहा मैंने तो नहीं मेरे चाचा ने देखा है, और कुमार से भारी दान भी प्राप्त किया है ।
कुशस्थल - पुराधीश - प्रतापसिंह - भूपतेः । सती सूर्यवती-सूनुः श्रीचन्द्रो जयताच्चिरम् ॥
श्रीचन्द्र प्रबन्ध को सुनने के कारण से मंत्री श्रादि • लोग रात्री में दरबार में न जा सके । प्रातः काल सभा में राजा ने पूछा आप लोग रात में न आये ? उनने कहा - देव ! हम 'श्रीचन्द्र' नाम के एक पुण्य पुरुष का चरित्र सुनने को रह गये थे । कुमार श्रीचन्द्र मुश्कराये ।
लक्ष्मण मंत्री ने इस पर निश्चय किया कि ये ही : वे श्रीचन्द्र कुमार हैं । जिनकी यशोगाथायें हमने आज सुनी थीं। इस बात का प्रचार हो गया । लोग अपने तकदीरों की सराहना करने लगे, कि ऐसा पुण्य- पुरुष हमारा राजा बना है ।.
एक दिन महाराज श्रीचन्द्र घुडदौड का श्रानन्द लेने, सेना के साथ उद्यान में पहुंचे थे। वहां उत्तम जाति . के घोड़ों को अलग २ वेश से सजाया जा रहा था। इतने में पश्चिम की तरफ से घुटनों तक धूल से सने हुए,