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जहां सिंह दहाड़ते हैं। हाथी चिंघाड़ते हैं। रीछ और बंदर किलकारियां मार रहे हैं। बारासिंगे, हिरण, खरगोश सूअर इधर से उधर किलोल करते हुए स्वतंत्रता का
आनन्द लूट रहे हैं । ऊबड़ खाबड़ जमीन में रास्ते ऊचे नीचे सांप की तरह निकल, रहे हैं । अाम. नीम जामून बड़ पीपल इमली बांवल सागून पलास महुए आदि के पेड़ अपनी आड़ में छाया में आश्रितों की रक्षाकरते हुए परोपकार का पाठ जगत को मूक भाव से पढा रहे हैं। ऐसा विन्ध्याचल का पहाड गंभीर योगी के समान समाधिमें लीन हुआ खडा है। कहीं २ उसमें सुधा-मधुर शीतल जल के झरणे भी कर रहे हैं।
सूर्य की बाल किरणें कुमकुम बखेर रही है । उस समय विन्ध्याचल की प्रामा अनन्त गुणी उन्लसित हो