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( ३२६ ) योगी ने कुमार से कहा मित्र ! तुम किस-विचार में डूबे हुए हो। तुम तो इस बात का ध्यान रक्खों कि योगि की साधना सिद्ध हो जाय । इस पर कुमारने कहाजिन के मन वचन और कर्मों में एकता होती है. उन्हीं की साधना सिद्ध होती है। तुम तन्मय हो कर साधना करते जाओ। मैं सावधान हूं। ___ इस के बाद योगी ने उसी विधान को तीसरी बार फिर किया । मगर मृतक में नाक की नोक का शल्य है, यह वह न जान सका । तब मंत्र का देवता उस मुरदे में प्रकट हो कर क्रोध से फुफकारता हुआ, शल्य को बाहर फेंक कर योगी से बोला. अरे दुष्ट ! तूने मुझे इस शल्य-युक्त-शव में उतारा,
और इस सीधेसादे कुमार को भी तूने ठगा है। देख । साधना कभी व्यर्थ नहीं जाती, अतः जा! इस की जगह
आज तू ही बलीका बकरा बन । ऐसा कहते हुए उस शवाधिष्ठित-देवने योगी को उठा कर जलते हुए अग्निकुण्ड में झोंक दिया । कुमार हा ! हा !! करता ही रह गया। योगी आग में पड कर सोने का पुतला बन गया।
कुमारने अपने साधक की रक्षा न कर सकने से पश्चात्ताप किया। बाद आग के शांत हो जाने पर उस