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( ३२७ ) पकड़ कर ज्यों ही वह आगे बढता है, त्यों ही शव ने कहना शरु किया
कुमार ! राज-राजेश्वर होकर भी न मालूम क्यों इस योगी के चक्कर में फंस रहे हो ? योगी बड़ा दुष्ट है। कपटी है । तुम से वह अपनी साधना सिद्ध करना चाहता है। मैं तुम्हें सचेत कर देता हूं कि-कुमार ! अनजान में कहीं धोखा मत खा जाना ।
मुरदे के वचन को सुनकर कुमार विचार में पड़ गया और सोचने लगा कि यह क्या कह रहा है ? इतने में वहां एक मध्यम अवस्था वाली स्त्री आई । कुमार ने पूछा तू कौन है ? तो उसने आंखों में आंसू भर कर लम्बी २ सांस लेते हुए कहा___ इस स्थान से दक्षिण की ओर नन्दगांव में मेरा निवास है। यह फांसी में लगा हुया मेरा पति है। निर्धन होने के कारण यह चोरियाँ करता था। एक दिन पकड़ा गया, राजा ने इसे फांसी की सजा दे दी। लोगों के मुह से मालूम होने पर पति-मुख-दर्शन के लिये मैं आई हूं। तुम इसे इस प्रकार पकड़ कर क्या करना चाहते हो? . . . . . . . . . . .