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कर वह बोली, "स्वामिन् ! आपने योगी की प्रार्थना स्वीकार क्यों की ? | ये तो हमेशा से कपटी और कुटिल आचरणवाले होते हैं । इनका विश्वास करना आग से खेलना है | अतः मैं आपको वहाँ किसी भी प्रकार जाने नहीं दूंगी |
वह बोला, "प्रिये ! तुम जानती ही हो, कि शुद्धमनवाले का कल्याण ही होता है सम्पत्तियें उनके सामने हाथ बांधे खड़ी रहती हैं । विघ्न समूह उनके सामने से कपूर की तरह उड़ जाते हैं । अतः तुम घबड़ाओ मत किसी प्रकार की चिन्ता मत करो। मुझे अपना वचन पालन करने दो। अपना नारी धर्म पहिचान कर मेरा साहस बढ़ाओ वचन भंग से संसार में मेरी और तुम्हारी दोनों की हँसी होगी और आजीवन इस कलंक को चन्द्र के कलंक की तरह धारण करना पड़ेगा। धीरज धरो, नमस्कार मंत्र के प्रभाव से तुम्हारा सब तरह से कल्याण होगा । लो मैं तुम्हें फिर से वानरी बना देता हूँ । तुम निर्भय होकर इस पेड़ पर चढ़ जाओ ।"
यह कह कर कुमारने उसी प्राप्त जन के योग से उसे वानरी बना कर वृक्ष पर चढ़ा दिया और स्वयं हाथ में तलवार लिये घूमता हुआ स्मशान में योगी के