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( ३२४ ) मनुष्य को तुमने तालाब के तीर पर देखा था वह यहाँ आगया है।" यह सुनकर राजकुमारी बड़ी क्रोधित हुई और उसने मालिन के सिर पर चन्दन से भरा हाथ का पंजा मार दिया, वह बिलबिलाती हुई अपने घर पहुंची।
.. उसने यह सारी घटना राजकुमार से कह सुनाई। राजकुमार बड़ा लजित हुआ और उसने मित्र से कहा, ".मित्र ! क्या यही तुम्हारा बुद्धि बल है ?" मित्र ने उचर दिया, “घबराओ नहीं । राज-कन्या ने जो मालिनके सिर पर चंदन से भरे हाथ का पंजा मारा है उससे साफ प्रकट है कि उसने शुक्ल पक्ष की पंचमी को तुम्हें बहाँ आने का निमंत्रण दिया है। तुम किसी बात की चिन्ता मत करो, और अपनी आत्मा में किसी प्रकार की उथल पुथल मत मचने दो।" ... मित्र की बातें सुन कर राजकुमार को कुछ धीरज हुमा, और अब वे दोनों किराये पर मकान लेकर अलग रहने लगे। शुक्ल पक्ष की पंचमी को वह मालिन फिर धन लोभ से विवश कर वहाँ भेजी गई। उसने भी वहाँ जाकर राजकुमार के लिये मार्ग पूछा । यह सुन कर राजकुमारी क्रोध से तमतमा उठी.अओर कुकुम भरे हाथ से उसका गला पकड़ कर उसे धकेल दिया । फिर सखियों से