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( ३२१ ) पास जा पहुँचा। योगी पहले से ही तैयार था । पाते हो योगी ने कुमार से रक्षक बनने की प्रार्थना की । कुमारने उसे निर्भयतापूर्वक कार्य करने को कहा। - योगी विधि-पूर्वक जप और हवन आदि करके . अर्द्ध-रात्रि के समय कुमार से बोला, “वीर ! सुनो।
इसी दिशा में एक बहुत बड़ा बड़ का वृक्ष है। उस पर किसी, चोर का मृत शरीर लटक रहा है। तुम निर्भयता से वहाँ जाकर उस शव को यहाँ ले पायो। देखना ! बोलने की जरूरत पड़े तो भी तुम मत बोलना।"
योगी की आज्ञा पाकर कुमार शीघ्र ही रात्रि की शान्ति को भंग करता हुआ उसं बट-वृक्ष के नीचे जा पहुँचा । वहाँ पर चोर के शव को लटकता हुआ देखकर वह उस पर चढ़ा और चन्द्रहास तलवार से उसके बंधन काट डाले । ज्योंही. वह उस शव को पृथ्वीपर गिराकर वृक्ष से नीचे उतरा, त्योंहीं क्या देखता है ? कि वह शब पूर्व की तरह फिर से उसी शाखा में लटक रहा है। यह देख कुमार को न तो कोई आश्चर्य हुआ,
और न वह डरा, परन्तु साहस करके वह फिर पेट पर चढ़ा । फिर उसने उसी तरह बंधन काट कर उस शव को अपने कन्धे पर उठाकर बड़े से नीचे उतरा ।
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