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संसार एक रंग भूमी है । इस में भले बुरे कई प्रकार के पात्र होते हैं। भलों की भलाई सदा सुवर्याक्षरों में लिखी जाती है, याद की जाती है और बुरों की बुराई घृणास्पद हो कर यातो लोग भूल जाते हैं या फिर उस के प्रति तिरस्कार ही तिरस्कार होता रहता है। कौन नहीं । जानता परोपकारी विक्रमादित्य को वस्तुपाल-तेजपाल को या पौराणिक राजा श्रीपाल को । उसी तरह से उस दुर्जनवृति वाले धूर्त धवल सेठ को भी हम भूले तो नहीं पर उस के प्रति हमारा कोई सद्भाव नहीं है। ..... हमारा चरित्र नायक कुमार श्रीचन्द्र एक भला पात्र है। उसमें वीरता धीरता और गंभीरता तो हैं ही पर साथ ही साथ उदारता और दविणता भी चरमसीमा में पहुंच