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( २६५ ) पता नहीं वह अब कहां है । उसी की बुद्धि से, मैंने इतना रास्ता पार किया।
इस प्रकार उसके वचन सुन कर राजा ने और पुरवासियों ने कहा-वह अवश्य ब्रह्मचारी बाबा श्रीचन्द्र ही था, वह श्रीचन्द्र ही था इसमें कोई संशय नहीं। उपस्थित तारक भट्ट ने भी कहा ।
- राजा ने श्रीचन्द्र की इधर उधर खोज करवाई परन्तु वह कहीं न मिला । कुमारी प्रियंगुमंजरी करुण विलाप करने लगी। सुनने बालों की आंखों में भी आंसू छल छला गये। उसके मुंह से निकलनेवाले वियोगजन्य वचन इतने दयनीय थे, जिनका सुनकर पालतू मयूरों ने नृत्य छोड दिया । पालतू हरिणों ने घास खाना छोड दिया। यहां तक कि उसके दुख से सहानुभूति प्रकट करने के लिए उद्यान के पेडों ने भी फूलों के आंसू बरसाए। - पुत्री को इस प्रकार रोती कलपती देखकर पिता के धैर्य का बांध भी टूट गया। राजा नरसिंह. देव अपने
आप को संभाल न सका। वह घडाम से जमीन पर गिर पड़ा और उसके वाल. बिखर गये। सारा राजकीय वेष अस्तव्यस्त होगया। मुश्किल से होश में आने पर