________________
(
२६४)
एसे विकट समय में हमारा चरित्र नायक कुमार श्रीचन्द्र शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित क्षत्रिय वेश को धारण करके एक बड़े भारी जंगल में प्रा निकला । जोर की प्यास लग रही थी । किसी ऊचे स्थान पर चढकर दूर तक जलाशय को ढूढने के लिये दृष्टि दौड़ाई । कुछ ही दूर पर एक तालाब देखा, उसके किनारे एक दीप्तिमय तेजःपुंज भी दिखाई दिया। कुमार वहीं जा पहुंचा। अपने अंगोछे से जल को छानकर पीया, और वहां पड़े तेजःपुज संपन्न चन्द्रहास खड्ग को देखा । कुमार ने उसे उठा लिया और सोचा यह किसी देव-मनुष्य या विद्याधर की तलवार है।
इसका स्वामी कौन है ? यह जानने के लिये कुमार ने इधर उधर पता लगाया। पर कोई दिखाई न दियातब कुमार ने माना कि-या तो कोई इस तलवार को यहां भूल गया है, या आकाश में चलते २ असावधानी से किसी देव-विद्याधरकी पड़ गई मालूम देती है। तीक्ष्णता की परीक्षाके लिये पास खड़ी बांस की झाड़ी पर कुमार ने उसे चलाई। नीचे की तरफ मुंह किये लटकता हुआ एक आदमी अधकटा कुमार को दीख गया । वुमार को बड़ा खेद हुआ। पश्चात्ताप करता हुआ वह कहने लगा