________________
( ३०७ ) __यह कह कर विद्याधर ने सफेद अजन को प्रांज कर मुझे वानरी बना दी। कुछ फल आदि खाने पीने का सामान रख कर वह यहां से चला गया। इसके बाद तीसरे दिन वह फिर आया, इस काले सुरमे के योग से मुझे वापस स्त्री रूप बनाकर कहने लगा-'सुन्दरी !' डरती क्यों है ? ले ये मोदक, ये बड़े स्वादिष्ट हैं । इसके खाने से मन की अभिलाषा पूर्ण होती है-'देख मैं ज्योतिषी से अभी लग्न दिखा कर आया हूं। गुरुवार की दोपहरी में लग्न ठहरा है । इसीलिये मैं सारी विवाह की सामग्री यहां लेकर आया हूँ तू इसे सम्हाल कर रख । मैं बुधवार की रात्रि में या गुरुवार के प्रातःकाल में निश्चयरूप से आऊंगा इसमें तनिक भी सन्देह मत करना ।
यह सुनकर मैंने उस विद्याधर से कहा, "विद्याधर ! तुम विद्वान् होते हुए भी मूर्ख क्यों बन रहे हो ? तुम मेरे पिता तुल्य हो। तुम मेरे साथ विवाह कैसे करोगे।" इस प्रकार कहने पर भी उसने मेरी बात हंसी में टाल दी
और मुझे फिर वानरी बनाकर चला गया। ___ हे आर्य ! आज बुध की रात होगई है और वह नीच प्रातःकाल अवश्य ही आवेगा। यह मेरी कथा तो