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अर्थात् - महाराज प्रतापसिंह के चिरंजीवी श्रीचन्द्र कुमार के दान रूप पंखे से पैदा होने वाला कोई यश-रूप नवीनवायु याचक रूप धूली समूह को आपके सन्मुख लाया है ।
यह सुन मेरे पिता हेमपुर - नरेश ने उस कवि का उचित सत्कार करके उसे विदा किया उसके बाद मंत्रियों के साथ परामर्श करके श्रीचन्द्र कुमार के साथ मेरा विवाह करने का निश्चय किया गया ।
इस चर्चा से प्रसन्न मनवाली मैं समवयस्क सखियोंके साथ अपने फूल बाग में मनोरंजन के लिये गई । रंगबिरंगी फूलों से मेरे लिये हार, गजरे, कर्णफूल, आदि सखियों ने तैयार किये। इतने में कोई विद्याधर आकर मुझे उड़ा ले चला । उसने अपनी घरवालीके डर से मुझे यहां एकान्तवास में ला रखी है। यहां रहते हुए मुझे पांच दिन बीत गये हैं ।
विद्याधर ने मेरे साथ विवाह करने का प्रस्ताव रक्खा है मगर मैंने उसे ठुकरा दिया है । जब मैं अपने भाग्य पर रोने लगी तो उसने कहा - ' सुभगे ! रोती क्यों है ? मैं वैताढ्य - निवासी रत्नचूड विद्याधर हूँ । इस समय गोत्री नरेश ने मेरे मणिभूषण नगर पर अधिकार कर लिया है। इस