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( ३०३ ) भरी हुई कुप्पियाँ दो बाहर निकाली। एक में सफेद और दूसरी में काला अजन भरा हुआ था। उसने बानरी के संकेत से उसकी
आँखों में काला अजन डाल दिया। उस अजनकी महिमा से वह सुन्दर दिव्य वस्त्र और आभूषणों को धारण की हुई एक कन्या बन गई । उसे इस प्रकार मानवी बनी देख
आश्चर्य में डूबे हुए कुमार ने उससे पूछा,-"भद्र तुम कौन हो ? और तुम्हें किसने ऐसी दशा में पहुँचाया है ? इस स्थान का नाम क्या है ? इन सब बातों का उत्तर देकर तुम मेरे सन्देह को दूर करो।"
कुमार के सन्देह का निगकरण करती हुई हर्ष और लज्जा के वशीभूत उम कन्या ने कहा "हे वीरवर ! हेमपुर के स्वामी मकरध्वज नरेश की महारानी मदनावलीके गर्भ से मेरा जन्म हुआ है। माता पिता ने मेरा नाम : मदनसुन्दरी रक्खा है। मैं अपने भाई मदनपाल की छोटी बहन और माता पिता की बहुत प्यारी बेटी हूँ । शुक्लपक्ष में चन्द्रकला की तरह दिन ब दिन बढ़ती हुई में क्रम से तरुणावस्था को प्राप्त हुई। मैं मनुष्यों के सामुद्रिक लक्षणोंकी जानकार होने के नाते यह प्रतिज्ञा कर चुकी थी, कि जो कोई पुरुष बत्तीस लक्षणों से युक्त होगा, उसीके साथ विवाह करूंगी।