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विरंगी मणियों से जड़े हुए, अनेक प्रकार के चित्रों से चित्रित, देश विदेश की मनुष्योपयोगी, धातु, काष्ठ, काच आदि की सभी सामग्रियों से शोभायमान एक सुसज्जित कमरे में जाकर वह एक रत्न - जड़ाऊ पलंग पर बैठ गया ।
थोड़ी देर विश्राम कर लेने के पश्चात् कुमार ने आसानी से भीतर के कमरे के द्वार खोल दिये, और वह उसके अन्दर भी जा घुसा। वहां पर उसने एक बंदरी को रत्न जड़ाऊ पलंग पर सोते हुए देखा । यह देख कर वह दंग रह गया। इधर बानरी भी उसे चकित देख शय्या को छोड़ के एक दम उठ खड़ी हुई, और आकर उसके चरणों में गिर पड़ी । उसने उसके वस्त्र का अचल पकड़ कर पलंग पर बैठाया । पलंग पर बैठकर आश्चर्य चकित कुमार ने उस बंदरी से पूछा “ चेष्टा से तो तुम मानवी दिखई पड़ती हो और वैसे तुम बानरी हो यह क्या बात है ? मैं इस रहस्य को जानना चाहता हूँ। "
यह सुन कर वह रोने लगी और उसने दीवार में बने हुए एक आले की ओर इशारा किया । वह बार बार अपने नेत्रों ओर आले की ओर हाथ से इशारा कर के कुमार को समझाने लगी । उसके इशारे से कुमार उठ कर उस आले की ओर गया और उसमें से उसने जन