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( २६३) प्रियंगुमंजरी ने सखियों को विश्वास दिलाते हुए कहा-सखियों! अगर तुम मेरी बातों का विश्वास नहीं करती हो तो तुम स्वयं जाकर उसे पहले की बातचीत
और प्रेम भरें वचनों को पूछो, और उसके मुंह से कहलाओ । इस प्रकार उसकी जाँच करके देखो, कि वह वही है या दूसरा । * सखियों ने आज्ञा पाकर वैसा ही किया। उक्ति प्रत्युक्ति के अनन्तर उनको यह निश्चय हो गया कि यह वह श्रीचन्द्र नहीं है । यह तो कोई दूसरा छली पुरुष है । तब वे वहाँ से बाहर चली आई और कहने लगींस्वामिनि ! वास्तव में आपका कहना सच है । यह कोई अन्य ही है। हमें द्वारपाल से जाकर पूछना चाहिए । यह कहकर वे द्वारपाल के स्थान पर पहुँची मगर उन्हें वह भी दिखाई न दिया। यह देख सखियों को वहीं छोड़कर राजकुमारी स्वयं अपनी माता के पास चली गई इस प्रकार पुत्री को आई देख माता को कुछ सन्देह हुआ, और उसने निकट से पूछा-बेटी ! कुशल तो है ? तुम ऐसी हालत में ऐसे कैसे चली आई हो ? दुखी हृदय से राजकुमारी ने उत्तर दिया-माता जी ! बड़ा अनर्थ हो गया है। जिनको मेरी जिन्दगी सदा के लिए सौंपी थी वे तो कहीं दिखाई नहीं देते। परन्तु उनकी जगह कोई अन्य ही