________________
(२८८ ) वैर बसाने वाली होती है। अति दीर्घ, अत्तिहस्व, प्रति स्थूल, अतिकृश, अति--गौर और अति-कृष्ण, ऐसे छः तरह के भग, दुर्भग कहलाते हैं। कछुए की पीठ के समान उन्नत, हाथी के स्कन्ध समान, कमल के पत्ते के समान, सुसंवृत, अनुष्ण और अम्बर के समान सद्वृत्त, ये छः प्रकार के भग सुभग कहलाते हैं।
अब कुमार विवाह के योग्य और विवाह के अयोग्य स्त्रियों के लक्षण बतलाते हैं।
पीनोरू पीनगंडा, लघुसमदशना, दक्षिणावर्त-नाभिः । स्निग्धांगी चारु-सुभ्रः, पृथुकटिजघना, सुस्वरा चारुकेशी । कूर्म पृष्ठा--ह्यनुष्ण-द्विरदसम-पृथु स्कंधभागा सुवृत्ता सा कन्या पद्मनेत्रा, सुभग-गुणयुता नित्यमुद्वाह-योग्या ।।
अर्थात्- पुष्ट जंघोंवाली, प्रफुल्ल और पुष्ट गालों वाली, छोटे छोटे बराबर दांतों की पंकिवाली, दक्षिण की ओर भंवरीयुक्त नाभिवाली, स्निग्ध शरीर वाली, सुन्दर भौंहोंवाली, विशाल-जधन वालो, मधुर-स्वर एवं सुन्दरकेशोंवाली, सुभग-पग के समान विकसित नेत्रोंवाली ऐसी प्रधान गुणवती कन्या विवाह के योग्य होती है। विवाह के अयोग्य स्त्रियों के सामुद्रिक-लक्षण ये हैं::: पिंगाक्षी, पूपगंडा खर-परुषरवा, स्थूलजधोर्ध्व-केशी के लम्बोष्ठी, दीयात्रा प्रविरलदशना स्थमसाल्वोष्ठजिहा।