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(२६० ) दिया। प्रियंगुमंजरी ने भी प्रसन्न होकर उनके गले में वरमाला डाल दी। विवाह मंडप में कुमार का विधि"पूर्वक प्रौंखण (परीक्षण या पोखना) आदि के होजाने पर मातृका स्थान पर वरवधू को लाया गया। शास्त्रोक्त विधि से करणीय और आवश्यकीय कृत्यों को करके सुन्दर हरे बांसो से बनी, चारों कोनों में चार कलशों वाली चंवरी में अग्नि की साक्षी से फेरे फिराये गये । दहेज में यथायोग्यं सोना, चांदी, मणि, रत्न, दास, दासी, हाथी, घोड़े राजा ने बड़े भारी उत्साह के साथ दिये। धूमधाम से सवारी के साथ श्रीचन्द्र और प्रियंगुमंजरी को उनके निवासस्थान पर ले जाया गया । लोगों ने परस्पर इस प्रकार कहा
रूप, विद्या, कुल, बुद्धि और गुणों में यह कुमार एक ही है वैसे ही यह राजकन्या भी सौंदर्य और शील में एक ही है। इन दोनों का संयोग सुवर्ण के साथ रत्न का, इन्द्र के साथ इन्द्राणी का, रति के साथ कामदेव का रोहिणी के साथ चन्द्र का और रत्नादेवी के साथ सूर्य का जैसा सुन्दर योग हुआ है उन्हीं के समान इन दोनों का पारस्परिक सम्बन्ध भा उतना ही प्रशंसनीय हुआ है।