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इसीसे आपकी सेवा में वह न सका और समे उपस्थित होना पड़ा है। ___यह सुन महाराजाने कहा सेठ ! तुम्हारा पुत्र बड़ा
भाग्य शाली और लोकोत्तर चरित वाला है । जब वह क्रीडा से वापस लौटे तब मुझसे ज़रूर मिलाना । मैं उसे अपने पुत्रों से भी बढकर महत्तम पद प्रदान करना चाहता हूँ। ऐसा कह कर सेठ द्वारा की हुई भेठ को स्वीकारते हुए महाराज ने सेठ को कुमार के लिये वस्त्रालंकार
और जागीर प्रदान की । इस प्रकार महाराजा से सन्मानित हो सेठ जगह २ कुमार के गुणग्राम को सुनता हुआ और याचकों को दान देता हुआ घर लौट आया।
इधर कुमार को रथ में धूमते २ जंगल में आधी रात का समय हो गया। उसे निद्राने आ घेरा । सारथि को - रथ खोलने की आज्ञा दी। रथ एक सघन वृक्ष के नीचे
खोल दिया गया। मित्रने शय्या तैयार कर दी । कुमार .. सो गया। मित्र जगता हुआ पहरा देने लगा। उसी वृक्ष की
डाली पर बैठे एक शुक युगल ने कुमार के तेजस्वी चेहरे को देख आपस में बातें करना शरु किया । शुकीने कहा
हे प्यारे ! इस राज कुमार को दो बीजोरे के फल देकर ... अतिथि सत्कार करके हमें अपना जीवन सफल बनाना । चाहिये । बड़े फल के खाने से राज्य प्राप्ति और लोडे के